इंग्लैंड में आधुनिक खेती की शुरुआत | UPSC Family

 



पहली जून 1830 की घटना है। इंग्लैंड के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के एक किसान ने अचानक पाया कि उसके बाड़े में रात को आग लगने से पुआल सहित सारा खलिहान जलकर राख हो गया है। बाद के महीनों में इस तरह की घटनाएँ कई दूसरे जिलों में भी दर्ज की गई। कहीं सिर्फ़ पुआल जल जाती और कहीं तो पूरा का पूरा फ़ार्म हाऊस ही स्वाहा हो जाता था। फिर 28 अगस्त 1830 के दिन इंग्लैंड के ईस्ट केंट में मजदूरों ने एक थ्रेशिंग मशीन को तोड़ कर नष्ट कर दिया। इसके बाद दो साल तक दंगों का दौर चला जिसमें तोड़-फोड़ की ये घटनाएँ पूरे दक्षिणी इंग्लैंड में फैल गई। इस दौरान लगभग 387 थ्रेशिंग मशीने तोड़ी गईं। किसानों को धमकी भरे पत्र मिलने लगे कि वे इन मशीनों का इस्तेमाल करना बंद कर दें क्योंकि इनके कारण मेहनतकशों की रोजी छिन गई है। ज्यादातर खतों पर 'कैप्टेन स्विंग' नाम के किसी आदमी के दस्तखत होते थे। जमींदारों को यह खतरा सताने लगा कि कहीं हथियारबंद गिरोह रात में उन पर भी हमला न बोल दें। इस चक्कर में बहुत सारे ज़मींदारों ने तो अपनी मशीनें खुद ही तोड़ डालीं। जवाब में सरकार ने सख्त कार्रवाई की। जिन लोगों पर शक था कि वे दंगे में लिप्त हैं उन्हें फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया। 1976 लोगों पर मुकदमा चला, 9 को फाँसी दी गई और 505 को देश निकाला दिया गया जिनमें से 450 को ऑस्ट्रेलिया भेज दिया गया। लगभग 644 लोगों को बंदी बनाया गया।


इन खतों में मौजूद 'कैप्टेन स्विंग' एक मिथकीय नाम था। तो स्विंग के नाम पर दंगे करने वाले आखिर थे कौन? वे थ्रेशिंग मशीनों को तोड़ने पर क्यों आमादा थे? वे किस बात का विरोध कर रहे थे? इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमें अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के दौरान इंग्लैंड की खेती में आए बदलाव को देखना होगा।

1.1 खुले खेतों और कॉमन्स का दौर।


अठारहवीं सदी के अंतिम वर्षों और उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में इंग्लैंड के देहाती इलाकों में नाटकीय बदलाव हुए। पहले इंग्लैंड का ग्रामीण क्षेत्र काफ़ी खुला खुला हुआ करता था। न तो जमीन भूस्वामियों की निजी संपत्ति थी और न ही उसकी बाड़ाबंदी की गई थी। किसान अपने गाँव के आसपास की जमीन पर फ़सल उगाते थे। साल की शुरुआत में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के हर व्यक्ति को जमीन के टुकड़े आवंटित कर दिए जाते थे। जमीन के ये टुकड़े समान रूप से उपजाऊ नहीं होते थे। और कई जगह बिखरे होते थे। कोशिश यह होती थी कि हर किसान को अच्छी और खराब, दोनों तरह की ज़मीन मिले। खेती की इस जमीन के परे साझा जमीन होती थी। कॉमन्स की इस साझा ज़मीन पर सारे ग्रामीणों का हक होता था। यहाँ वे अपने मवेशी और भेड़-बकरियाँ चराते थे, जलावन की लकड़िया बिनते थे और खाने के लिए कंद-मूल-फल इकट्ठा करते थे। जंगल मे वे शिकार करते थे और नदियों ताल तोलिया में मछलियां पकड़ते थे। गरीबों के लिए तो यह साझा जमीन जिंदा रहने का बुनियादी साधन थी। इसी जमीन के बल पर वे लोग अपनी आय में कमी को पूरा करते। अपने जानवरों को पालते। जब किसी साल फसल चौपट हो जाती तो यही जमीन उन्हें संकट से उबारती थी। 

          इंग्लैंड के कुछ हिस्सों में खुले खेतों और मुक्त और साझी जमीन की यह अर्थव्यवस्था सोलवीं शताब्दी से ही बदलने लगी थी। 16 वी सदी में जब उन के दाम विश्व बाजार में चढ़ने लगे तो संपन्न किसान लाभ कमाने के लिए उन का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश करने लगे। इसके लिए उन्होंने भेड़ों की नस्ल सुधारने और बेहतर चारागाह की आवश्यकता हुई। नतीजा यह हुआ कि साझा जमीन को काट–छाट कर घेरना शुरू कर दिया गया ताकि एक ही संपत्ति दूसरे से या साजा जमीन से अलग हो जाए। साझा जमीन पर झोपड़िया डालकर रहने वाले ग्रामीणों को उन्होंने निकालकर बाहर किया और बाड़ा बंद खेतों उनका प्रवेश निषेध कर दिया गया। यह बाड़ाबंदी की शुरुआत थी।

        18 वी शताब्दी के मध्य तक बाड़ा बंदी आंदोलन की रफ्तार काफी धीमी रही शुरू में गिने-चुने भू स्वामियों ने अपनी पहल पर ही बाड़ा मंदी की थी। इसके पीछे राज्य या चर्च का हाथ नहीं था लेकिन 18वीं सदी के दूसरे हिस्से में बाराबंदी आंदोलन इंग्लैंड के पूरे देहात में फैल गया और इस ने इंग्लैंड को भूदृश्य को अमूल बदल कर रख दिया। 1750 से 1850 के बीच 60 लाख एकड़ जमीन पर बाड़े लगाई गई। ब्रिटेन की संसद में सक्रिय भूमिका निभाते हुए इन बाड़ओ को वैधता प्रदान करने के लिए 4000 कानून पारित किया।

1.2 अनाज की बढ़ती माँग

जमीन को बाड़ाबंद करने की ऐसी जल्दबाजी क्यों थी? और, इन बाड़ों का मतलब क्या था? नए बाड़े पुराने बाड़ों से भिन्न थे। जहाँ सोलहवीं शताब्दी के बाड़ों में भेड़ पालन का विकास किया गया, वहीं अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बाड़ाबंदी का उद्देश्य अनाज उत्पादन बढ़ाना हो गया, और इसका संदर्भ भी अलग था- एक नए दौर का सूचक अठारहवीं शताब्दी के मध्य से इंग्लैंड की आबादी तेजी से बढ़ी। 1750 से 1900 के बीच इंग्लैंड की आबादी चार गुना बढ़ गई। 1750 में कुल आबादी 70 लाख थी जो 1850 में 2.1 करोड़ और 1900 में 3 करोड़ तक जा पहुँची। जाहिर है कि अब ज्यादा अनाज की जरूरत थी। इसी दौर में इंग्लैंड का औद्योगीकरण भी होने लगा था। बहुत सारे लोग रहने और काम करने के लिए गाँव से शहरों का रुख करने लगे थे। खाद्यान्नों के लिए वह बाज़ार पर निर्भर होते गए। इस तरह जैसे-जैसे शहरी आबादी बढ़ी वैसे-वैसे खाद्यान्नों का बाजार भी फैलता गया और खाद्यान्नों की माँग के साथ उनके दाम भी बढ़ने लगे।


अठारहवीं सदी के अंत में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच युद्ध शुरू हो गया। इसकी वजह से यूरोपीय खाद्यान्नों के आयात सहित व्यापार बाधित हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि इंग्लैंड में खाद्यान्नों के दाम आसमान छूने लगे। इससे उत्साहित होकर भूस्वामी अपनी बाड़ाबंद जमीन में बड़े पैमाने पर अनाज उगाने लगे। उनकी तिजोरियाँ भरने लगीं और उन्होंने बाड़ाबंदी कानून पारित करने के लिए संसद पर दबाव डालना शुरू कर दिया। 





1.3 बाड़ाबंदी का युग


     इंग्लैंड के इतिहास में 1780 का दशक पहले के  किसी भी दौर से ज्यादा सक्रिय दिखाई देता है। इससे पहले अक्सर यह होता था कि आबादी बढ़ने से खाद्यान्न का संकट गहरा जाता था। लेकिन 19वीं शताब्दी में इंग्लैंड में ऐसा नहीं है। जिस तेजी से आबादी बढ़ी उसी हिसाब से खाद्यान्न उत्पादन भी बड़ा। जनसंख्या वृद्धि की तेज रफ्तार के बावजूद 1868 में खाद्यान्न किया जरूरतों का 80% इंग्लैंड पुत्र पैदा कर रहा था। बाकी का आयात किया जा रहा था।

        खाद्यान्न उत्पादन में हुई यह वर्दी खेती की तकनीक में हुई वह किसी नए बदलाव का परिणाम नहीं था। बल्कि हुआ सिर्फ यह की नई नई जमीन पर खेती की जाने लगी। भू स्वामियों ने मुक्त हेतु सार्वजनिक जंगलों बदलती जमीन और चारागाह को काट छांट कर बड़े बड़े खेत बना लिए थे। इस समय तक किसान खेती में ऊनी सरल तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे थे जो 18वीं सदी के प्रारंभ में बड़े पैमाने पर प्रचलित थी। 1680 के दशक में इंग्लैंड के कई हिस्सों में किसान शलजम और तिपतिया घास की खेती करने लगे थे। उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि फसलों से जमीन की पैदावार बढ़ती है। फिर, शलजम को पशु भी बड़े चाव से खाते थे। इसलिए वे शलजम और तिपतिया घास की खेती नियमित रूप से करने लगे। बाद के अध्ययनों से पता चला कि इन फ़सलों से जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ है जो फ़सल वृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण थी। असल में लगातार खेती करने से जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा घट जाती है। जिसके कारण जमीन की उर्वरता भी कम होने लगती शलजम और तिपतिया घास की खेती से जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा फिर से बढ़ जाती थी और ज़मीन फिर उपजाऊ हो जाती थी। इस तरह उन्नीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में खेती में सुधार लाने के लिए किसान इन्हीं सरल तरीकों का नियमित रूप से इस्तेमाल करने लगे थे।

      अब बाड़ाबंदी को एक दीर्घकालिक निवेश के रूप में देखा जाने लगा। था और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए लोग बदल-बदल कर फ़सलें बोने लगे थे। बाड़ाबंदी से अमीर भूस्वामियों को अपनी जोत बढ़ाने और बाजार के लिए पहले से ज्यादा उत्पादन करने की सहूलियत मिली।


1.4 गरीबों पर क्या बीती ?

    बाड़ाबंदी ने भूस्वामियों की तिजोरियाँ भर दीं। पर उन लोगों का क्या हुआ जो रोजी-रोटी के लिए कॉमन्स पर ही आश्रित थे? बाड़ लगने से बाड़े के भीतर की जमीन भूस्वामी की निजी संपत्ति बन जाती थी। गरीब अब न तो जंगल से जलावन की लकड़ी बटोर सकते थे और न ही साझा ज़मीन पर अपने पशु चरा सकते थे। वे न तो सेब या कंद-मूल बीन सकते थे और न ही गोश्त के लिए शिकार कर सकते थे। अब उनके पास फ़सल कटाई के बाद बची ठूंठों को बटोरने का विकल्प भी नहीं रह गया था। हर चीज़ पर जमींदारों का कब्जा हो गया, हर चीज़ बिकने लगी और वह भी ऐसी कीमतों पर कि जिन्हें अदा करने की सामर्थ्य गरीबों के पास नहीं थी।


जहाँ कहीं बड़े पैमाने पर बाड़ाबंदी हुई, खासतौर पर इंग्लैंड के मध्यवर्ती क्षेत्रों और आसपास के प्रांतों (काउंटियों) में, वहाँ गरीबों को जमीन से बेदखल कर दिया गया। उनके पारंपरिक अधिकार धीरे-धीरे खत्म होते गए। अपने अधिकारों से वंचित और ज़मीन से बेदखल होकर वे नए रोजगार की तलाश में दर-दर भटकने लगे। मध्यवर्ती क्षेत्रों से वे दक्षिणी प्रांतों की ओर जाने लगे। मध्य क्षेत्र में सबसे सघन खेती होती थी और वहाँ खेतिहर मजदूरों की भारी माँग थी। लेकिन अब कहीं भी गरीबों को एक सुरक्षित और नियमित रोजगार नहीं मिल पा रहा था।

पुराने जमाने में आमतौर पर मज़दूर भूस्वामियों के साथ रहा करते थे। वे मालिकों के साथ खाना खाते और साल भर उनकी सेवा-टहल करते थे। यह रिवाज 1800 तक आते-आते समाप्त होने लगा था। अब मजदूरों को काम के बदले दिहाड़ी दी जाती थी और काम भी केवल कटाई के दौरान ही होता था। जमींदार अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए मजदूरों की दिहाड़ी की मद में कटौती करने लगे। काम अनिश्चित, रोजगार असुरक्षित और आय अस्थिर हो गई। वर्ष के बड़े हिस्से में गरीब बेरोजगार रहने लगे।

1.5 थ्रेशिंग मशीन का आगमन ।

     जिन दिनों नेपोलियन इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए था, उन दिनों खाद्यान्न के भाव काफी ऊंचे थे और काश्तकारों ने जमकर अपना उत्पादन बढ़ाया मजदूरों की कमी के डर से उन्होंने बाजार में नए-नए थ्रेशिंग मशीनों को खरीदना शुरू कर दिया। कस्तकार अक्सर मजदूरों के आलस शराब खोरी और मेहनत से जी करने की शिकायत किया करते थे । उन्हें लगा कि मशीनों से मजदूरों पर उनकी निर्भरता कम हो जाएंगी। 

         युद्ध समाप्त होने के बाद बहुत सारे सैनिक अपने गांव और खेत खलियान में वापस लौट गए अब उन्हें नए रोजगार की शुरुआत थी लेकिन उसी समय यूरोप में अनाज का आयात बढ़ने लगा उसके दाम कम हो गए और कृषि मंडी छा गई बेचैन होकर भू स्वामियों ने खेती की जमीनों को कम करना शुरू कर दिया और मांग करने लगे कि अनाज का आयात रोका जाए उन्हें मजदूरों की दिहाड़ी और संख्या कम करनी शुरू कर दी गरीब और बेरोजगार लोग काम की तलाश में गांव-गांव भटकते थे और जिन्हें पास अस्थाई सा कोई काम था उन्हें भी आजीविका को खुद जाने की आशंका रहती थी। 

      यही वह दौर था जब देहात में कैप्टन स्विंग वाले  दंगे फैले गरीबों की नजर में थ्रेशिंग मशीन बुरे वक्त की निशानी बनकर आई।

   निष्कर्ष  

  

    इस तरह इंग्लैंड में आधुनिक खेती के आगमन से कई तरह के बदलाव आए। मुक्त खेत समाप्त हो गए और किसानों के पारंपरिक अधिकार भी जाते रहे। अमीर किसानों ने पैदावार में वृद्धि और अनाज को बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमाए और ताकतवर हो गए। गांव के गरीब बाड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन करने लगे कुछ लोग मध्यवर्ती क्षेत्रों को छोड़कर दक्षिणी प्रांतों का रुख करने लगे जहां रोजगार की संभावना बेहतर थी तो कुछ अन्य शहरों की ओर चल पड़े मजदूरों की आई का ठिकाना ना रहा , रोजगार असुरक्षित और आजीविका के स्त्रोत स्थिर हो गए। 

इंग्लैंड में आधुनिक खेती की शुरुआत | UPSC Family इंग्लैंड में आधुनिक खेती की शुरुआत | UPSC Family Reviewed by Aslam Ansari on August 30, 2021 Rating: 5

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